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Tej prakash pandey

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Tej prakash pandey

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धनंजय

धनंजय

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उठो धनंजय प्रवर पार्थ तुम ,धर्म कई एक साथ खड़े हैं l

पुत्र धर्म कहीं धर्म गुरु का ,कुल के दीपक जिद पे लड़े हैं l 

अभिमानी अभिमान विवष हो ,ज्ञानी प्रतिज्ञा से जा बधे हैं l

उठो धनंजय मुक्त करो अब ,ग्लानि से गंगा सुत लिपटे हैं l


कर्म नहीं सूझे हे माधव, सन्मुख सबको देख खड़े l

कैसे धनुष उठाऊ केशव , इन सबके उपकार बड़े l

गोद खिलाया पितामह ने ,तो गुरूवर ने तिमिर हरे l

कैसे धनुष उठाऊ अच्युत , युध्य भूमि में बंधु खड़े l


पाप बोध में जीवन जूझे ,मन अशांत हो घड़ी - घड़ी l

अश्रु रक्त की थाल मिलेगी ,राजभोग से सजी हुई l

बंधु हंता क्या मै कहाऊ ,गुरु हत्या का पाप लगेगा l

एक दुराचारी के कारण माधव ,

शदियों का अभिशाप लगेगा l


हंसे कन्हैया मुरली वाले , अर्जुन तू ज्ञानी रे अधूरा l

द्रोपदि के उस चीर हरण ने , इनके तप को हर लिया पूरा l

क्षमा योग्य इनमे न दिख्ता , मर्यादा ये तोड़ चुके हैं l

यज्ञ सुता के अभिशापों से , धर्म से ये मुख मोड़ चुके हैं l


अश्रुपूरित नयन लिए सहमा सा अर्जुन खड़ा रहा l

प्रश्नो से उत्पलवित हो व्याकुल ,

माधव से है बोल पड़ा l

मुझसे कहते धनुष उठाओ ,हो नरभक्षी शस्त्र चलाओ l

क्या होगे परिणाम समय के ,वासुदेव मुझको बतलाओ l


नारायण का विश्व रूप ,सहसा एकदम विस्तार हुआ l

सृष्टि का करने भक्षण ,वो महाकाल सा प्रकट हुआ l

धीरज छूटा देख पार्थ का ,गीता ज्ञान तब फूट पड़ा l

कर्मों का हो ज्ञान मोक्ष के , मार्गो को फिर खोल दिया l


निष्काम कर्म को श्रेष्ठ बताया ,जगत में कर्म नियन्ता ने l

तीनों कालों के संचालक, धर्म रूप भगवंता ने l

पत्ता -पत्ता हर डाली में ,स्वांश - स्वांश रख मुट्ठी में l

संकल्प स्वाधीनता दे दी है ,उस भगवन ने हर प्राणी में l


काम क्रोध मद मोह त्याग ,मत्सर लोभ त्याग करके l

छः इन्द्रियों का कर परिमार्जन ,मन को अच्युत रख करके l 

सत्कर्मो का करके चयन ,प्रारब्ध का करके परिमार्जन l

यश अपयश भगवत स्वरूप , परिणाम मोह त्याग करके l


सत्ता अपनी तज करके , उस परम सत्य के चरणों में l

सुख दुःख में रह एक रूप ,उस आनन्दरूप के चिंतन में l

चित में जब हो निरंकार , च्युत हो जग के बंधन से l

अंत समय ऐसा योगी , अभेद्य हो उस आनंद घन से l



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