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Tej prakash pandey

Inspirational

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Tej prakash pandey

Inspirational

असाध्य पीड़ा

असाध्य पीड़ा

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क्या कभी ये सोचा तुमने ?

मानवता कितनी बाकी है ,

यूं तो संसृति का हर प्राणी ,

निज जीवन का अधिकारी है,

सबकी माता क्या नहीं धरती ,

या अंबर तुमने ताना हैं ,

सूरज रचा है क्या ये तुमने ,

या सागर को दी गहरायी ,

क्या कभी ये सोचा तुमने ?


सबकी अपनी दिनचर्या थी 

सबको मोह निज प्राणों का है 

सबको प्रकृति ने यथायोग्य ,

अपने कलेवर में धारा है ,

फिर कैसी ये बिखरी पंक्ति ,

लुप्त प्राय का खेल ये क्या है ,

क्या कभी सोचा तुमने ?


छोड़ो चलो फिर इन बातों को ,

जो तुम कहते वही सुनाओ 

तुमने माना मानव केन्द्रित 

उसके भी तुम दशा बताओ 

एक बना राजा फिरता है 

एक भीख लेते घूमे है ,

एक साधनों पे झूमे है ,

एक झूठे पत्तल चूमे है ,

क्या कभी सोचा तुमने ?


कहते हो तुम उद्यम का श्रम ,

या किस्मत का खेल बताते ,

चलो बताओ जरा बताओ ,

क्या कभी उनको अधिकार दिया 

तेरी ही माना दुर्बल वो रहे 

मानसिक या शारीरिक कुछ भी 

चल बता क्या ये थी तेरी मानवता 

क्या कभी सोचा तुमने ?


महल बनाए वो जो तेरे 

बाहर फूटपाथ में सो रहे 

भोजन छप्पन जो तू खाये ,

उपजाए जो भूखे सो रहे ,

कितने नरसंहार ना भूले 

आंसू पीते ख़ुशी ख़ुशी वो ,

मानवता की तेरी परिधि क्या 

बता जरा मुझको भी अब तू 

मानवता की परिधि तेरी क्या 

बता जरा मुझको भी अब तू 

क्या कभी सोचा तुमने ?



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