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Tej prakash pandey

Thriller

4  

Tej prakash pandey

Thriller

कॉलेज लव - वो दौर गया

कॉलेज लव - वो दौर गया

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4

वो दौर गया ,

 हम चुपके-चुपके कहते थे ,

अपनी ख्वाहिश अंक समा ,

बस सहमे सहमे रहते थे ,

दिल की अनबन या कोई चुभन ,

शब्द घाव या प्रीत सघन ,

ख्वाहिश अपनी या मीठे सपन ,

हम दिल में सजोये रहते थे l


वो दौर गया ,,

एक- एक रिश्ता वो कैसे भी ,

हो जन्मजात या दिल से सृजित ,

हो याराना या महबूबा ,

हो बचपन की संगोष्ठी या ,

फिर हो वो सम्मान महति l

हम उनको सोचा करते थे ,

हम उनका सोचा करते थे ,

दिल से निभाया करते थे l


वो दौर गया ,

स्कूल में पढ़कर फिर घर आकर ,

अंकगणित और बारहखड़ी में ,

थोड़ी प्रश्नावली विज्ञानों में ,

थोड़े थोड़े गीत गजल में ,

दादी के मीठे भजनों में ,

मम्मी के लोरी गानों में ,

छिपकर जब सो जाते थे l


वो दौर गया ,

समाकलन में उलझे उलझे ,

बीजगणित के जटिल प्रश्न में ,

त्रिकोणमिति के सूत्र सहेजे l

हम अवकल हो जाते थे ,

फ़िर भौतिकी विद्युत को सोचे ,

ट्रांसफार्मर को हम पढके ,

धारा के सिद्धांत समझ जब ,

फूले नहीं समाते थे l


वो दौर गया ,

कॉलेज में एडमिशन पाके ,

पापा ने जो फोन दिलाया ,

वैश्विक सुख जब हमने पाया ,

पहली दफा फ़िर इश्क लड़ाया ,

सपनों को भी खूब सजाया ,

ना जाने वो कॉलेज के दिन ,

कैसे कट गए समझ न आया ,


वो दौर गया ,

मीठी बाते मीठी यादें ,

सतना के उन गलियारो में ,

या फिर रीवा ए पी एस मे ,

व्यंकटेश या पशुपति जी मे ,

महेश्वरी के होटल में ,

चाय से इश्क या इश्क से चाय ,

दोस्ती यारी या अवारी ,

सेमेस्टर टेस्ट के आजाने से ,

मनोज तिवारी के चरणों में ,

झुककर कैसे प्रश्न बनाये ,

अनिल कुमार से मूल समझकर ,

रातो रातो उनको लिखकर ,

जैसे तैसे ओ दिन बिताये l


वो दौर गया ,

केमिस्ट्री के जटिल बॉन्ड में ,

क्या तोड़े क्या नया बनेगा ,

 ऊर्जा कितनी वो छोड़ेगा ,

लैब में बस ये गणित लगाये ,

सोडियम से हम आग जलाये ,

जादू नहीं ये है विज्ञान ,

घर घर जाके सबको बताए ,

कितना सुन्दर लगता था ना ,

बचपन भरा वो यौवन अपना ,

एटम के हम बॉन्ड बनाए ,

अपना बंधन जब फ़िर टूटे,

अपनी हिंदी मां की शरण में ,

क्रांति मैम से साहित्य को गाए ,


वो दौर गया ,

साहित्य विज्ञान का बेजोड जोड़ ,

दो बॉन्ड की करनी कहिये ,

एक जो हम लैब में तोड़े ,

एक हटा दूसरे को जोड़े ,

कॉरबन नाइट्रोजन ऑक्सीजेन 

ऐसे जो हम खेल थे खेले ,

बायो वाली साहब निकली ,

हमसे ज़्यादा जो थी एक्टिव ,

फिर पढते साहित्य सही था ,

तुलसीदास जी दिल में बस गए ,.

कबीरदास का वो फ़क्कड़पन ,

प्रेमचंद सी सघन वेदना ,

अज्ञेय का नाम देखकर 

दिल से जो किलकारी फूटी ,

ऐसी ऐसी कविता फूटी ,

वो दौर गया 

वो दौर गया ......



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