हिमपात
हिमपात
विगत रात मे हूआ हिमपात,
श्वेत है अम्बर, श्वेत है धरा,
शिशिर का प्रकृति कृति से आत्मसात ।
गिरते हिमकण जैसे श्वेत कपास,
ओढाते चादर मानो कर परिहास,
क्षितिज तक सब श्वेत ही श्वेत
अंत और अनंत का नही आभास !
हर वस्तु, हर रंग परआवरण श्वेत,
जीवन के यथार्थ से है करता सचेत,
विगत वर्ष मे देखे हैं कई उतार-चढाव ,
कोरी श्वेतता करे नववर्ष का संकेत।
शिक्षा थी विगत वर्ष श्यामलता,
रहे बन प्रेरणा और सहज सजगता,
श्वेताम्बर प्रकृति का यहीआह्नान ,
नववर्ष में है कोरी ,नूतन, नवलता।
ऊँचाई से सॅभल - सॅभल कर,
झरने नीचे को आते हैं,
धरती से मिलने के पहले,
पर कोहरों में छुप जाते हैं।
हटा तनिक कोहरे की पट्टी ,
सूरज ने पल - भर को देखा,
इतने से ही कौंध गई फिर,
ओर - छोर तक झिलमिल रेखा।
सहसा द्वार खुले घर - घर के,
नभ छाये चिड़ियाँ के पाँत,
हुलस - हुलस कर ल़ोग निहारें,
इस ॠतु का पहला हिमपात।
Written by Vikas Sharma Daksh