प्रलय
प्रलय
करुणदायिनी, दया सिंधु हे!
पुकार उठा सब दीन कंठ से ।
आओ, ये सब देख सुधार लो
डूब डूब कर क्यों मरता है ?
घटनापूर्ण सचेत सकल काल
नयनों के सम्मुख प्रकट नहीं।
तरलित जल में डूब रहे तन
आत्माओं का पुण्य प्रवेश ॥
नवीन अलंकृत सुवेग रथ से
कल्की अवतार प्रकट हुए।
ताज पहनकर भूगोल उतरे
प्रलय निशा का जयगान गा।
सोचे थे क्या करते हम सब
एक प्रलय मच जाता तो !!
बैठकर सोचे लेटकर सोचे
घूम घूमकर फिरकर सोचे॥
महल मकान गिर डूबे सारे
गिरि पहाड़ सब जल तह में
जान लो सच बड़ा खड़ा था
हिमगिरि शीश न डूबा था।
प्रहरी सीमा भव्योत्तर की,
उज्ज्वल चोटी हिम राजा की
नारा लगाता रहा प्रिय दिल
पावन भारत माता की जय !
भारत की जय भारत की जय
कंठ कंठ से गूँज उठने लगे।
नीर भरे युग नयन खोल माँ
देख लिया था नीर प्रकोप ?
बाढ़ का नाम बताकर आए
थे यहाँ कुछ दिन पहले कुछ
बाढ़ आए तो करेंगे क्या हम
क्षण भर सोच व्यथित हुआ।
लेकर प्रमाण पत्र हाथ में
अनुमति से सरकार की।
आए कुछ लोग माँगे कुछ
दस पैसे झट बढ़ा दिया।
अगर अब होगा सा एसा
बाढ़ों का तो क्या करता !!
तय करके तब रखता था
मैं न किसी से माँगूँगा ॥
चिंताओं से कातर था मन
पानी ऊपर चढ़ने लगा।
मानव सहित समस्त डूबे
देखा व्योम विशाल खड़ा ॥
गाँधी नहीं था ब्रह्मा नहीं
कबीर नहीं था तुलसी नहीं
संत न था यह देख बचाने
नीलांबर का स्वच्छ नयन !!
मुझे लगा कुछ बोलने को
आतंक है यह अन्याय है।
हिंसा है यह कुछ भी नहीं
क्या इसका नाम है बेचैनी ?
आखिर जय गान करता रहा
सूर कबीर पद याद आया ॥
शांति की जय शांति की जय
जय जय शांति अहिंसा की ॥