बसंत की मुस्कान
बसंत की मुस्कान
सुहावना सुख निकट बिछाकर
वसंत का पर्व उतर खड़ा है l
नव तरंग से हवा झुला फिर
उदासीनता जिय से हटाया।
शीतराज से त्रस्त शरीर को
राहत देकर वसंत घूम रहा।
पतझड़ में झट गिरते पत्ते,
वैसे निराशा को झटका दे।
आशा का दीप जलाता वसंत,
गीता का स्वर भी मिल जाता।
पंचम स्वर में कुहू कुहू, पुकारने
लगती कोयल, प्यारे टेसू में बैठे।
सरसों के फूल झूम झूमकर,
आँखों में नव स्वप्न बिंखेरता।।
सदा प्रफुलित रहने की सीख -
देकर पवन हदय को सजाता।।