मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी
बहुत समय पहले की है बात
वो थी पूनम की एक रात।
मैं था बड़े चैन से सोया
सतरंगी सपनों में खोया।
अचानक किसी ने मानस पटल खटखटाया
अलसाते हुए मन का द्वार खोला तो पाया।
काले परिधान पहने, कोई थी खड़ी
अदृश्य था चेहरा, फिर भी भयावह बड़ी।
डर और क्रोध के बीच में डोलते हुए
मैंने स्वयं को देखा ये बोलते हुए।
कौन है तू, तेरा चेहरा क्यूँ नहीं दिखता
उसने कहा, मैं हूँ तेरी जिंदगी की रिक्तता।
तू कैसे जी रहा है यही देखने आयी हूँ
जिंदगी सँवारने का अवसर भी लायी हूँ।
जीवन के सब पल जब स्याह रंग से सने हैं
तो कैसे तेरे स्वप्न सुन्दर सतरंगी बने हैं।
मैंने कहा, मेरे पास है एक स्मृतियों की तिजोरी
जिसमें सहेज रखे हैं सात रंग, की हो ना चोरी।
दिन भर नियति से लड़, जब मैं थक जाता हूँ
तब इन्हीं रंगों को देख, थोड़ा सुख चैन पाता हूँ।
वो बोली, क्या तुम चाहोगे इनको जीवन में लाना
रिक्त जिन्दगी को, खूबसूरत रंगों से सजाना।
कब तक यूँ मात्र, स्वप्नों के सहारे जियोगे
और तिरस्कार के हलाहल को, रोज पियोगे।
यदि हाँ, तो मुझे इन रंगों के बारे में बताओ
और मेरी झोली में इन्हें डाल, निश्चिन्त हो जाओ।
जब सो कर उठोगे, तो एक नयी भोर होगी
सतरंगी जिंदगी की डगर, तेरी ओर होगी।
सुन कर उसकी बातें, आशा की किरण जगी
जीवन फिर से हो सुन्दर, मुझे ऐसी लगन लगी।
अच्छा तुम्हें बताता हूँ. क्यूँ ये रंग मुझको भाते हैं
नीरस निर्दयी जीवन में ये, कैसे खुशियाँ लाते हैं।
ये पहला रंग बैंगनी मुझको, माँ से रोज मिलाता है
कहती थी ये रंग राजसी, इसकी याद दिलाता है।
छोटा था तो माँ मुझको, राजा बेटा कहती थी
उसके बुने बैंगनी स्वेटर में, ममता की गर्मी रहती थी।
दूजे रंग जामनी में, बचपन की यादें रहती हैं
हर रात मेरे कानों में ये, नयी कहानी कहती हैं।
गर्मी की छुट्टी में हम सब, जामुन आम चुराते थे
जीभ जामनी दिखा दिखा कर, सबको खूब खिझाते थे।
तीजा रंग है नीला जो, फैला नभ के विस्तारों में
नहीं असंभव कार्य कोई, तरुणावस्था के नारों में।
नीलवर्ण मुझे आज भी, उड़ने की शक्ति देता है
नित्य निराशा के दंशों की. पीड़ा पल में हर लेता है।
हरे रंग से जुड़ी हैं यादें, सावन में लगते झूलों की
मिट्टी की सौंधी खुशबू और, बागों में खिलते फूलों की।
विकल वेदना के अंगारे जब, हृदय को तड़पाते हैं
शीतल मंद मलय के झोंकें, आ मुझको सहलाते हैं।
रंग पाँचवाँ पीला मुझको, कोयल की कूक सुनाता है
ऋतुराज की भव्य छटा, मेरे समक्ष ले आता है।
पीले कपड़े पहन के जब हम, मंद मंद मुस्काते थे
किसी काल्पनिक कथा पात्र बन, गीत सुरीले गाते थे।
रंग छठा मैंने सपनों में, उगते सूरज से पाया है
रात भले हो कितनी काली, भोर हमेशा आया है।
पाने से है त्याग बड़ा, ये भगवा याद दिलाता है
अज्ञानता के तिमिर में, सही मार्ग दिखलाता है।
सुर्ख गुलाबों के गुलदस्ते, जो मैंने उसको दिये नहीं
स्वप्न मधुर तो देखे थे पर, पूरे हमने किये नहीं।
प्रथम प्रणय की वो यादें, अंतिम रंग में रहती हैं
आज भी वो कितनी बातें, बिन शब्दों के कहती हैं।
यूँ कह मैंने सब रंगों को, स्मृति की तिजोरी से निकाला
और कंपकंपाते हाथों से, रिक्तता की झोली में डाला।
बस उस एक रात के बाद, अब कभी न सोता हूँ
अपनी रिक्त जिंदगी के साथ, बेरंग स्वप्नों को ढोता हूँ।
कभी कभी ऐसा होता है की जिंदगी किसी उद्देश्य के अभाव में रिक्त सी प्रतीत होती है परन्तु बीते दिनों की मधुर स्मृतियाँ एक सम्बल दे जिंदगी के संघर्षों से लड़ने हेतु शक्ति प्रदान करती है। इसीलिए जिंदगी की मधुर स्मृतियों को सहेज कर रखना बहुत आवश्यक है।