अग़र मैं खुदा होता
अग़र मैं खुदा होता


केश यूँ बनाता कि सावन के काले बादल होते,
मेरी इस कला को देख, सारे यूँ ही पागल होते,
काले वसन में ढांक तुझे, बस में ही एक अनिमिश ताकता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।
कांपती पत्ती गुलाब की, यूँ अधरों को में रूप देता,
फिर सिखा तुझे नाम अपना, तुझसे नया सा सुन लेता,
जो बोलती फिर तू मचलकर, में हाथ रखके रोक देता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।
तितली से पंख तेरे, आसमान में खोल देता,
अनमोल सी मुस्कान को, में तारों से तोल देता,
जो कब्रों से दफन पड़े हैं, वो राज़ सारे खोल देता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।
इंद्रधनुष से रंग भरता, रंग पहन सुंदर तू होती,
बांध पैंजनिया सतरंगी सी, रंग बिखेरती तू फिरती,
रंगों को तेरे ओढ़के, बेरंग में मदहोश होता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।
उस इश्क की स्याही बना, में तुझे कुछ इस प्रकार लिखता,
बेतरतीब कुछ बेपरवाह लिखता, में कैद तू आज़ाद लिखता,
सुंदर
तुझे में शांत लिखता, स्वछंद तुझे निशांत लिखता,
स्वेच्छा ही तेरा नाम है, बस तुझे ही में हर बार लिखता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।
में कहती हूँ तू आसमान है, गहरा है तू महान है,
आसमाँ कि जिसमे दरिया है, सुरलोक का तू ज़रिया है,
की हैरान होते सुनके सारे,आसमाँ है या कि दरिया है,
में कहती राज़ हज़ारों हैं, बेशक ही वो एक दरिया है,
उस आसमाँ में उड़ते हुए, वो दरिया में गुम हो जाता,
ओर अगर वो खुदा होता, वो मुझे बनाता।
लड़ता फिरता वो दुनिया से, फिर में जाकर बहला देती,
रोता की सब तंग करते हैं, में प्यार से सुला देती,
फिर झूठमूठ का प्यार बटोरे, वो मुस्कान ओढ़ सो जाता,
अगर वो खुदा होता, वो मुझे बनाता।
ममता सी तू पुरानी है, माशूक सी नई भी है,
क्या मेल में तेरा करु, तू आग है पानी भी है,
ठहरी है तो बस मुझपे तू, गतिशील तू रवानी भी है,
जब धूप कड़ाके की पड़ती, में तुझसे छांव मांगने आता,
अगर मैं ख़ुदा होता, में तुझे बनाता।