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Swechchha Tomar

Romance Tragedy

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Swechchha Tomar

Romance Tragedy

जब टूट के मैं बिखर रही थी।

जब टूट के मैं बिखर रही थी।

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जब टूट के मैं बिखर रही थी।


उदास अश्कों का सैलाब था,

सूखा हुआ एक गुलाब था।

मैं जिस दौर में इश्क में थी,

तब ज़माना बहुत खराब था ।

वो छीन के उसे ले जा रहे थे,

मैं अश्कों के रेगिस्तान मैं,

बेजान तर रही थी।


जब टूट के मैं बिखर रही थी।


मैंने सपने बहुत खूबसूरत देखे थे,

इतने खूबसूरत सपने,

मनहूस कैसे हो सकते हैं।

मेरे इश्क से, मेरे माँ-बाप बदनाम

कैसे हो सकते हैं।

एक खुश, खूबसूरत फैसले से...

सब नाराज़ कैसे हो सकते हैं।

खैर... वो झूठी शान बचाने को,

रूह मेरी मर रही थी।


जब टूटके मैं बिखर रही थी।


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