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वो घाव अब भी दुखता होगा ना ?

वो घाव अब भी दुखता होगा ना ?

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वो घाव अब भी दुखता होगा ना?

कि जब टूटके तुम बिखर रहे थे

ख़्वाब आंखों में तर रहे थे।

कितनी मुश्किल हुई होगी ना ?


जब यार तुम्हारे मर रहे थे।

वो लाल लहू साथी का

देख ख़ून बहुत खौलता होगा न ?

वो घाव अब भी दुखता होगा ना ?


कि जब तुमने ख़्वाब कोई देखा होगा,

तुम्हारा अजन्मा अंश कैसा होगा।

फिर मुस्कुराए होगे तुम भी यूँ ही।

कि बिल्कुल मेरे ही जैसा होगा।


बस देखने उस एक झलक को,

ख़्वाब अंधेरे में सजता होगा ना ?

वो घाव अब भी दुखता होगा ना।


कि जब छोड़ आए वो शहर,

जहाँ पे फूल बरसते थे।

कि बरसातें आके चली गई,

वो तुम्हे देखने तरसते थे।


डरते थे तुम्हे वो खो न बैठें,

बरसातों से हाथ धो न बैठें।

कि फिर सूखा ही तो रह जाएगा,

जब बेटा घर न आएगा।


जिस आँचल में छुपाए माँ खुश रहती थी।

वो आँचल भी तो तरसता होगा ना?

वो घाव अब भी दुखता होगा ना?


तुम मुस्कुराहट का आसमाँ हो,

कि हँसकर बारिशें ला देते हो।

फिर फूल खिलते हर घर में हैं,

जहां तुम मुस्कुरा देते हो।


उन फूलों को सींचने जान हाथों में लिए फिरते हो,

ग़र रह गई मरने में कसर, आँसुओ से सींचा करते हो।

वो आँसू हमें कभी दिखा नही,

कभी तो आँख से गिरता होगा न ?

वो घाव अब भी दुखता होगा ना।


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