मैंने कहानी लिखी
मैंने कहानी लिखी


मेरी कहानी मैं तुम्हें महल नहीं मिट्टी के घर मिलेंगे,
चबूतरे पर लकड़ी की चारपाई और कुछ लोग बेघर मिलेंगे।
बीड़ी सुलगाके ज़िन्दगी का बखान करते हुए कुछ बुज़ुर्ग मिलेंगे,
दीवाली की उस लाल किताब के खाली पन्नो मैं जिन्होंने कोई बात पुरानी लिखी ।
देखो मैंने कहानी लिखी।
मेरी कहानी मैं ख़ुदा बसता है,
मंदिर से आते वक़्त वो रोज़ मेरे लिए रेबड़ी लाता है।
जब रूठके के मैं ठंडी ज़मीन पे सो जाती हूँ, वो हाथों में खाने की थाली लिये मनाने आता है,
लोग कहते हैं कि आजकल मेरा ये भगवान आसमान मैं बसता है।
आसमान तो मैं जा ना सकी, तो मैंने फिर ज़मीन आसमानी लिखी,
देखो मैंने कहानी लिखी।
मेरी कहानी मैं गेहूँ और सरसों के खेत हैं,
धूप फेकता आसमान है, और उसमें तपती हुई रेत है।
कुछ झुलसे हुए ख्वाब और उनकी ठंडी रेख है,
उस धूप से जल रहे दिन मैं कुछ भूखे से पेट हैं।
ख़ैर... बर्खा मेरा नाम है और मैंने शाम रूमानी लिखी,
देखो मैंने कहानी लिखी ।