तो क्या हुआ तू चाँद नहीं !
तो क्या हुआ तू चाँद नहीं !


मैं चाँद नहीं,
उन तारों में एक हूँ, कुछ उजाला मेरे पास है
उस उजाले में सुकून है, वो सुकून मुझे रास है।
कुछ रात के मुसाफिर मिले,"तू ख़ास है तू ख़ास है"
तू निखार तेरी रोशनी, तू आग है तू ख़ास है
तुझसे ये आसमान है, इसका सौंदर्य चाँद नहीं
तो क्या हुआ तू चाँद नही !
मैं रोशनी बांटने गया, जहाँ की घुप्प अंधेरा था
उस पल का कर्ज़दार, रोया जैसे वो मेरा था
फिर चाँद पा लिया उसने, उसको लगा सवेरा था
सब तोड़के भागा वो यूँ, सुंदर सा जो बसेरा था
सोचा कि रोक लूं उसे, कहदूँ कि चाँद झूठ है,
अंधों सा पलटकर बोला, तू क्या जाने सवेरे को
चाँद मेरे साथ था, उसने हटाया अंधेरे को
दिखावा है तू कोई चाँद नहीं
तारा है तू कोई चाँद नहीं।
पल भर मैं फिर यूँ टूट गया,
चाँद से बेवजह रूठ गया,
खुश होके देखा हज़ारो ने, जल्दी से कुछ मांगो देखो कोई तारा टूट गया
तू टूट के हर रोज़ बिखर, इतना मजबूत चाँद नहीं।
तू चाँद नहीं।