किसी की दिल की धड़कन बन जाऊं। धकधक बन सिर्फ खुद को ही सुनूँ।। किसी की दिल की धड़कन बन जाऊं। धकधक बन सिर्फ खुद को ही सुनूँ।।
मेरी बढ़ती उम्र की निशानियां! पुरानी तस्वीरों पर जमा होती गर्द की मोटी परतें! मेरी बढ़ती उम्र की निशानियां! पुरानी तस्वीरों पर जमा होती गर्द की मोटी परते...
जिन लम्हो में तुम खामोशी चाहते हो वो पल तुम हमारे साथ काट सकते हो। जिन लम्हो में तुम खामोशी चाहते हो वो पल तुम हमारे साथ काट सकते हो।
याद करे उन लम्हों को तो सोते में मुस्कुराते है याद करे उन लम्हों को तो सोते में मुस्कुराते है
शक्तिमान को पल दो पल में, शक्तिहीन सा कर देती है शक्तिमान को पल दो पल में, शक्तिहीन सा कर देती है
सहनशीलता की सूरत है नारी है सम्मान नारी है महान सहनशीलता की सूरत है नारी है सम्मान नारी है महान
बन्द करो पायल की झम झम शान्त करो चूड़ी की खन खन बन्द करो पायल की झम झम शान्त करो चूड़ी की खन खन
दुःख व्याधि रोग द्वेष के समूल नाश को, भर कर कटोरी खीर छत ऊपर रखी जायेगी। दुःख व्याधि रोग द्वेष के समूल नाश को, भर कर कटोरी खीर छत ऊपर रखी जायेगी।
सब कहते हैं समय खराब हो तो सीख देता है, समय अच्छा हो तो आनन्द देता है सब कहते हैं समय खराब हो तो सीख देता है, समय अच्छा हो तो आनन्द देता है
सुखद विहंगम भोर दृश्य था, सुर-दुर्लभ प्रकृति की छाँव में सुखद विहंगम भोर दृश्य था, सुर-दुर्लभ प्रकृति की छाँव में
अब तो उसके दिए हुए आँसू भी अच्छे लगने लगे है, अब ये तारे मुझे अपने लगने लगे है। अब तो उसके दिए हुए आँसू भी अच्छे लगने लगे है, अब ये तारे मुझे अपने लगने लगे ...
तेरी सूरत तेरे कानों की बाली मुझे दीवाना बना देती है तेरी सूरत तेरे कानों की बाली मुझे दीवाना बना देती है
मैं साथ हूं तेरे हर कदम एहसास हो तुझको सनम मैं साथ हूं तेरे हर कदम एहसास हो तुझको सनम
फिर एक बार तुम जीत जाओगे। तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही। फिर एक बार तुम जीत जाओगे। तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।
इसी तरह खिल सकते जीवन के सभी कष्टों को हंसी खुशी से सहते हुए। इसी तरह खिल सकते जीवन के सभी कष्टों को हंसी खुशी से सहते हुए।
खुशियों की होली आती है हर गम को दूर ले जाती है खुशियों की होली आती है हर गम को दूर ले जाती है
अहा ! अयोध्या के घर-घर में, भारत भू के हृदय नगर में.. दीपमालिका के उजास का, अर्थ हुआ प अहा ! अयोध्या के घर-घर में, भारत भू के हृदय नगर में.. दीपमालिका के उजास का, अ...
सोचती हूं बाहर निकलूंगी तो मर जाऊंगी और अंदर रहकर ज़्यादा जी नहीं पाऊंगी सोचती हूं बाहर निकलूंगी तो मर जाऊंगी और अंदर रहकर ज़्यादा जी नहीं पाऊंगी
ना उम्मीद की कोई आस जगने पाई है..... ना उम्मीद की कोई आस जगने पाई है.....
सवारूंगी उसके उज्जवल भविष्य को और बनेगा वह पुनः विश्व गुरु...! सवारूंगी उसके उज्जवल भविष्य को और बनेगा वह पुनः विश्व गुरु...!