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Sandeep Gupta

Fantasy

5.0  

Sandeep Gupta

Fantasy

क्या तुम चलोगे मेरे साथ

क्या तुम चलोगे मेरे साथ

2 mins
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क्या तुम चलोगे मेरे साथ वहाँ,

जहाँ टूटते हैं तारे रोज़ ख़ूब सारे,

टूटते तारों से मैं माँगना चाहता हूँ,

खिलौने ढेर सारे ।

रखूँगा कुछ अपने पास,

और बाँट दूँगा खिलौने बाक़ी सारे ।


क्या तुम पूछोगे नहीं,

कि है कौनसी वो जगह,

जहाँ मिलेंगे खिलौने मुफ़्त इतने सारे ।

मैं तुम्हे बता दूँगा सब सच,

और ले चलूँगा अपने साथ,

यदि आओगे तुम,

फोन अपना रख कर घर पर ।


क्या तुम चलोगे मेरे साथ,

समंदर किनारे हवा खाने,

सीपियाँ बटोरने,

और लहरों से आची-पाची करने ।

सीपियों में बंद कर,

मैं लाना चाहता हूँ,

घर अपने समंदर ।


क्या तुम पूछोगे नहीं,

कि समंदर सीपियों में समाएगा कैसे,

गूगल पर तो कोई नहीं बताता,

इस बारे में कुछ ।

मैं तुम्हे बता दूँगा ये रहस्य भी,

और ले चलूँगा अपने साथ,

यदि आओगे तुम,

फोन अपना रख कर घर पर ।


क्या तुम चलोगे मेरे साथ चाँद पर,

बना रहा हूँ मैं एक सीढ़ी,

जो ले जाएगी हमें सीधे वहाँ ।

सुना है चाँद से दिखती है ज़मीन,

बहुत ही हसीन ।


क्या तुम पूछोगे नहीं,

कि सीढ़ी से क्यों,

अंतरिक्ष यान से क्यों नहीं जाएँ हम ।

मैं तुम्हे बता दूँगा सब सच,

और सिखा दूँगा सीढ़ी बनाने का हुनर भी,

यदि आओगे तुम,

फोन अपना रख कर घर पर ।


क्या तुम चलोगे मेरे साथ वहाँ,

जहाँ कैद हैं ख़्वाब और ख़्वाहिशें,

ऊँची दीवारों से टकराकर,

वापस लौट जाती हैं जहाँ,

इंक़लाब की आवाज़ें ।

चुपके से जाके वहाँ,

दीवारों पे, खिड़कियाँ टाँग,

लौट आएँगे वापस यहाँ ।


क्या तुम पूछोगे नहीं,

कि कौन रहता है वहाँ,

और किसने बनाई ये दीवारें ।

मैं तुम्हे बता दूँगा सब सच,

और ले चलूँगा अपने साथ,

यदि आओगे तुम,

फोन अपना रख कर घर पर ।


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