अरुणोदय गीत
अरुणोदय गीत
तिमिर निशा का ढ़लने दो,
ऊषा ने गीत सजाया है।।
चांद-सितारों के टिम-टिम से
मूंद रहीं आंखें थीं कलियां
सुप्त हुईं जो चंचल गलियां
छींगुर ने मीठे क्रन्दन से
भ्रमरों को पुनः जगाया है।
खग-मृग के मधुरिम कलरव,
शीतल-शीतल शोर पवन के
गुंजित हैं कोने हर मन के
मद्धम किरणों की लाली से
सूरज ने ओज बिछाया है।
खिले पुष्प हैं उपवन-उपवन
श्वेत-श्यामला तितली का गुंजन
नदियों में रमणीय चित्रांचल
तरुओं ने अद्भुत छाया से
मन-हरणी दृश्य पिरोया है।
तुलसी,बेल,धरा को धोती
गिर रहे बादलों से मोती
हैं माटी में घुलते -मिलते
संग लहरों के बहते-बहते
मिल सागर को चमकाया है।
ऊषा ने गीत सजाया है।।
तिमिर निशा का ढ़लने दो
ऊषा ने गीत सजाया है।।