देशप्रेम
देशप्रेम
इंकलाब की आवाज से
थरथराता जहान है।
तू धीर वीर है देश का
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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इस सारगर्भित संसार में
धरा की गर्भ से जन्मा है तू,
तू ऋणी इस वसुंधरा का
कर्ज को चुका ज़रा
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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सरहदें परिवार हैं
चांद को भुवन बना
गाड़ झंडा देश का
आसमां कदमों में झुका।
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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सौन्दर्य से परिपूर्ण मन
मौत को माला बना
कर रोम रोम सृजित तू
धरा को लहू से सजा
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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मां भारती का रुदन
चीर दे सीना मेरा-तेरा
हुंकार भर हौसलों से
उड़ान मन की गर्जना
है आवाज हर जवां का
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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दर्द झेलती मां भारती
पुत्रों को फिर भी पालती
नि:स्वार्थ करूणा बांटती
वसुंधरा तुमसे कह रही
नि:स्वार्थ फर्ज कर अदा।
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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गूंजती नाद वीरता की,
चीरती आकाश को,
धरा जगी झूम उठी,
चिल्ला उठी वीरानियां
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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कर तू अपना साधकर
सीना तू अपना तानकर
बढ़ता रहे सम बहती नदी,
कह रही बहती हवा
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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मरना यहां जीना यहां
सरहदें जागीर हैं।
अब न लुटे गैरों के हाथ।
सफ़र मुश्किलों से था भरा
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!
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इंकलाब की आवाज से
थरथराता जहान है
तू धीर वीर देश का।
बढ़ा कदम बढ़ा कदम!!