विश्व भ्रमण
विश्व भ्रमण
लक्ष्य निर्धारित कर निकल पड़े हैं
अब न पीछे मुड़कर देखेंगे
मंज़िल तय कर ही लौटेंगे ।
बाधाओं का डर नहीं है
हौसले अब दोस्त हमारे
सीख रहे समुद्र से हम
कभी तो मिलेंगे किनारे ।
जब संगठित है हम
तो डर किस बात का
संकट पर भीम बनकर टूटेंगे
समझ गए
फूल के साथ काँटे भी तो मिलेंगे ।
हम वो सैलानी
हर दिन उत्सव सा मनाते
ज़िंदगी का हर राग
एक ताल में बजाते
कर लो यह विश्वास
अब तो विश्व भ्रमण कर ही लौटेंगे ॥
