जुगनू
जुगनू
1 min
246
जब मैं छोटा था,
रात में अक्सर देखता
टिमटिमाते जुगनुओं को,
बनकर अँधेरे में मेरे दोस्त
रोशनी बिखेर जाते,
हर दृश्य मनोरम बना जाते
पकड़ने उन्हें मैं भागता दूर-दूर
खेलते आँख मिचौली मेरे साथ
हाथ कभी न आते
लेकिन मज़े बहुत आते
कितनी ही रातें गुज़ारी उनके साथ।
बड़े हुए हम,
निकल पड़े बाहर
याद आ रही उन जुगनूओ की
बिखेर दे फिर रोशनी आज
ढूँढ रहा उन्हें फिर
पता नहीं कहाँ खो गए
गलती मेरी है
क्यूँ नहीं लाया साथ
उन्हें तो नए दोस्त
मिल गए होंगे वहाँ।
