मक़सद
मक़सद
चल पड़ा बेड़ा करने को मक़सद है पूरा
चुनौतियों का डर नहीं ,
मंज़िल की दरकार है
लग रहा सब शांत ,स्थिर
ख़ुद पर विश्वास है ।
देख कर यह दृश्य ,
हो रहा अभिमान है
नाव पर ही मौजूद तमाम साधन
लंबे सफ़र का सारा इंतज़ाम है
याद दिला रहा यह,जैसे
वर्तमान के जहाज़ है ।
अभिभूत हूँ नहीं थी ,
तकनीक उनके पास
पर हौसले जबां है
हवा का वहाब विपरीत या
लहरों का उतार-चढ़ाव हो
सूझबूझ यह नाविक की
डगमगाएँगी नहीं नाव उनकी ।
मनोरम सब लग रहा
मस्तक उठा खड़ी पर्वत शृंखलाएँ
क्षितिज पर बादल है छाए
जल पर विचरित नौकाएँ
अनुपम इस सौंदर्य को
नज़र न किसी की लग जाएँ।
सीताराम जी के बेमिसाल चित्र ने
विश्व में बनाई पहचान है
प्रत्यक्ष घटना पर चलाई तूलिका
लाड हेस्टिंग्स के समय की बात है
बयां कर रहा यह सफ़र निराला
मुर्शिदाबाद से शुरू, लखनऊ जिसका मुक़ाम है ॥
