तस्वीर
तस्वीर
तस्वीरें होती थी हमारा सहारा
जब हम घर से दूर हुआ करते थे
आज तोह एैसा लगता है की मैं खुद ही
तस्वीर बन गया हूँ
बस फ़र्क़ इतना है की यह तस्वीर बोलती है
पूरे दिन में पोज़ भी सेम ही रहते हैं
यह तस्वीर कभी होल में तो
कभी बेडरूम मे दिखती है
बस जगह बदलती रहती है
बस इत्ज़ार है की अगर यह और यूँ ही चलता रहा
तो कहीं सच में तस्वीर न बन जाऊँ
और दिखूँ मैं कोई दीवार पर टंगा हुआ।