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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ६५ ;गरुड़ जी के प्रशन

रामायण ६५ ;गरुड़ जी के प्रशन

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गरुड़ कहें, प्रभु ये बतलाओ 

वेद कहे कि, ज्ञान दुर्लभ है 

पर आप तो भक्ति के पक्षधर 

दोनों में से कौन सुलभ है। 


भक्ति ज्ञान में कोई भेद ना

समझने, साधने में ज्ञान कठिन है 

काकभुसुण्डि बोले गरुड़ से 

ज्ञान होने पर भी विघ्न हैं। 


दो धारी तलवार समान ये 

गिरते इससे देर ना लगे 

जो ज्ञान को प्राप्त कर ले 

ज्ञान उसको फिर मोक्ष दे। 


पर अगर तुम भजो राम को 

मुक्ति अपने आप मिल जाये 

मोक्ष सुख उसको मिलता ही 

जो हरि भक्ति है पाए। 


जिस ह्रदय में भक्ति की मणी हो 

परम प्रकाशमान वो रहता 

काम, क्रोध, और लोभ का कीड़ा 

उसको कभी भी कुछ न कहता। 


गरुड़ पूछें फिर सात प्रशन ये 

सबसे दुर्लभ शरीर कौन सा 

सबसे बड़ा दुःख क्या है और 

सबसे बड़ा है सुख कौन सा। 


संत, असंत का भेद क्या है 

सबसे बड़ा पुण्य समझाएं 

सबसे भयंकर पाप कौन सा 

मानस रोगों का मर्म बताएं। 


काकभुसुण्डि बोले ये वचन थे 

कोई शरीर न मनुष्य शरीर सा 

स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी 

ज्ञान, वैराग्य और भक्ति देता। 


दरिद्रता जैसा दुःख न कोई 

संतों के संग सा सुख नहीं है 

अहिंसा ही एक परम धर्म है 

परनिंदा करे जो , पाप वही है। 


मानस रोग जो हैं मनुष्य के 

उनकी जड़ मोह और अज्ञान है

 प्रभु की भक्ति, संजीवनी बूटी 

सुख की पूँजी बस प्रभु का ध्यान है। 


राम चरित समुन्द्र सामान हैं 

उनकी थाह ना कोई पा सके 

गरुड़ चले फिर वैकुण्ठ धाम को 

बार बार उनकी स्तुति करके। 


शिव कहें तब पार्वती से 

आसक्त राम में है जिसका मन 

वही गुणी है, वही ज्ञानी है 

राम नाम ही है सच्चा धन। 


देश धन्य जहाँ गंगा जी हैं 

पतिव्रता स्त्री धन्य है 

राजा धन्य, न्याय करे जो 

ना डिगे धर्म से, ब्राह्मण धन्य है। 


धन धन्य जिसकी पहली गति होती 

दूसरों को हम दान हैं देते 

बुद्धि धन्य जो पुण्य में लगी हो 

घडी धन्य जो सत्संग में बीते। 


ब्राह्मण की अखंड भक्ति जिसमें 

मनुष्य का वो जन्म धन्य है 

रामभक्त पुरुष पैदा हों जिसमें 

संसार में वो ही कुल धन्य है। 


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