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Rashmi Sthapak

Classics

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Rashmi Sthapak

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दोहे रश्मि के

दोहे रश्मि के

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सोती है जब ये धरा,

स्वर जब होते मौन।

जाने तब पलकों तले,

ख़्वाब सजाता कौन।।


धीमी बहती इक नदी,

मन में कहीं उदास।

कुनबा हरियाला गया,

रहा नहीं कुछ पास।।


वर्षा का भी है अलग,

अपना ही कानून।

रस्ता उसका देखते,

बीत गया है जून।।


ताल हुये सब गुम कहाँ,

मिलता नहीं हिसाब। 

धरा रोज है पूछती,

देना हमें जवाब।।


कटते जंगल देखकर,

हवा करे है क्लेश।

काले बादल रूठ कर,

चले गए परदेश।।


तपन-जलन है बढ़ रही,

अब तो जागें लोग।

हरियाली के मोल में,

हम ले आए रोग।।


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