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Dinesh paliwal

Classics

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Dinesh paliwal

Classics

माँ

माँ

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जब मेरे बचपन की हर गलती को,

तुम हंस हंस झुठलाती थी,

दिल धक से तेरा रुक जाता था बस,

जब चोट मुझे लग जाती थी,

नटखट, शरारती, नालायक कुछ भी ,

पर तेरी आंख का तारा हूँ,

लाख उलाहने देता था जमाना,

मैं फिर भी तो तेरा प्यारा हूँ।


तुम जननी हो मेरी और मैं सुत तेरा,

है ये सबसे अटूट बंधन प्यारा,

ममता तेरी हैं छाँव मेरी बस,

ये अम्बर तेरा आँचल सारा।


तूने जाने क्या क्या त्यागा,

दी कैसी कैसी कुर्बानी हैं,

ईश्वर तो हमें कभी दिखे नहीं,

पर धरती पर तू उनकी निशानी है,


उऋण सभी से हो सकता हूँ,

पर ऋण चुका नहीं सकता तेरा,

ये काया भी तो तूने ही दी माँ,

जग में तुझ बिन कैसे कुछ मेरा।


चल आज जियें फिर उन दिन को,

तेरी गोद में सर रख सो जाता था,

तेरे हाथों की चम्पी का मज़ा तो,

बस हफ्तों हफ्तों ही आता था,


तेरी आंख से गिरा एक आंसू भी,

मुझे पूरी रात रुलाता था,

जब तू हंसती थी माँ मेरी,

ये ब्रह्मांड भी तो मुस्काता था,


तेरी लोरी हो या डांट तेरी माँ,

सब पे था बस अधिकार मेरा,

तू अब भी सर आशीष ही रखना,

मेरी सांसें हैं माँ बस प्यार तेरा।।


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