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Manisha Patel

Romance Classics

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Manisha Patel

Romance Classics

मोहब्बत पैरहन नहीं

मोहब्बत पैरहन नहीं

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मोहब्बत पैरहन नहीं, जब जी चाहा पहना जब जी चाहा उतार दिया,

मोहब्बत तो इबादत है सनम, जिस पर सब कुछ अपना वार दिया।


मोहब्बत वो शय है जो वीरान दिल को भी गुलशन सा महका दे,

हमें तो मोहब्बत ने एक अदद खूबसूरत हमसफ़र की बाहों का हार दिया।


दूरियांँ तय होती एक दिल से दूसरे दिल तक, है बंदगी सा सुकून इसमें,

महसूस रूहानियत होगी यक़ीनन, गर चोला गुरुर का तुमने उतार दिया।


इश्क़ है तो पाकीज़गी है जरूरी, न है सच्ची वफ़ा के बिन गुज़र इसका,

आशिक़ वही है सच्चा जिसने वफ़ा के बदले इश्क़ में ऐतबार दिया।


मोहब्बत हो जावेदानी, रहे वजूद जिसका इस ज़हांँ से उस ज़हाँं तक "मनु"

किताब-ए-इश्क़ में नाम उसी का दर्ज़ हुआ, जिसने मोहब्बत में सब कुछ हार दिया।


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