सवाल आँखों के
सवाल आँखों के
देर रात तक जागती है सजल आंँखें,
न जाने किस शून्य में ताकती है आंँखें,
क्यों हो गई है भाव विहीन न जानूंँ मैं
क्यों अनगिनत सवाल पूछती है आंँखें।
पूछती मुझसे कहांँ गए वो मीठे सपने,
ज़रा सी बात पर क्यों रूठ गए अपने,
अविरल बहाती रहती अश्रुओं की धारा,
चमक इन आंँखों की अब लगी है डूबने।
राह-ए-मोहब्बत हैं ख़ार में हुई तब्दील,
क्यों मंज़िल इश्क़ को हुई नहीं हासिल,
इंतज़ार ही क्यों मुझ में रह गया ठहर,
कहती हर पल, अब तो करो तफ़सील।
रात दिन पैहम करती अनगिनत सवाल,
कुछ सुने ना मेरी, चाहती जवाब हर हाल,
मजबूरियों ने होंठ हैं सिले कहूँ भी क्या मैं,
ज़हन में हर लम्हा उठता रहता है बवाल।
देखूँ जब जब आईना, मन भारी हो जाए,
क्यों इतनी लाचारी, मन मेरा कचोटे जाए,
मोहब्बत क्यों पिंजर बन गई मेरे लिए ही,
क्या दोषी हूंँ मैं? सवाल ये जीते जी मार जाए।