चूमे प्रेम निशानी मन
चूमे प्रेम निशानी मन
तड़पे,सिसके,छुए, निहारे
चूमे प्रेम निशानी मन।
लौट न पाता पास तुम्हारे
किन्तु हठी,अभिमानी मन।
किया हवा ने छल बादल से,
चली छुड़ाकर हाथ अचानक।
ठहर गया बढ़ सका न आगे,
रहा अधूरा प्रेम कथानक।
बुने उसी को साँझ सकारे,
पल पल गढ़े कहानी मन।
लौट न पाता पास तुम्हारे
किन्तु हठी, अभिमानी मन।
पलकों की चौखट पर बैठे
स्वप्न अपाहिज डाले आसन ।
लौटेगी बैसाखी लेकर ,
नींद नहीं देती आश्वासन।
उम्मीदों पर रात गुजारे
पड़े पड़े सैलानी मन।
लौट न पाता पास तुम्हारे
किन्तु हठी,अभिमानी मन।
इठलाती चंचल लहरों पर,
डाल रहा सन्नाटा डोरे।
नाम रेत पर लिखें उंगलियां
विरह वेदना सीप बटोरे।
रोज उलचता बैठ किनारे,
नम आँखों का पानी मन।
लौट न पाता पास तुम्हारे
किन्तु हठी, अभिमानी मन
बिखर गया था जहाँ प्रणय का,
रिश्ता नाज़ुक धागों वाला।
गूँथे जहाँ मौन आकुलता,
अनुबन्धों की टूटी माला।
खड़ा वहीं से तुम्हें पुकारे,
करने को अगवानी मन।
लौट न पाता पास तुम्हारे
किन्तु हठी,अभिमानी मन।

