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Sunita Shukla

Abstract Classics Inspirational

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Sunita Shukla

Abstract Classics Inspirational

अंतर्मन आलोकित कर दे

अंतर्मन आलोकित कर दे

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खिली-अधखिली सी धूप

जगमगाता रवि व्योम

बिखरी स्वर्ण रश्मियां

फैला प्रकाश का अथाह स्त्रोत

दमकते चेहरों पर प्रस्फुटित


अधरों पर ठिठकी स्मित रेखा

पोर-पोर प्रसरित उमंग

हिय सजग सहज उल्लास संग

जन-जन की खुशियों के मध्य

मन है नितांत शांत और क्लांत


तम छाया तब भी रहा निशांत

घन सघन आवरण डाले सा

मन में अकुलाहट धारे सा

भावहीन बेरंग है जीवन

बेसुध बेकल दिखता तन-मन

उल्लास उमंग से लगता इतर


व्यथित हृदय तम की परछाई

विचारशून्यता की फैली गहराई

तलाश एक ऐसी किरण की

जो अंतरमन में भर दे रोशनी

हो प्रकाशित जीवन ऐसी एक आस है


जीवन में दिख रहा जो तम का प्रवास है

चीर तमस की वह गहराई

एक किरण रोशनी की अकुलाई

बनकर सृजन सहाय करे विकास

फैले स्वर्ण भोर की रश्मि का प्रकाश

शक्ति का अजस्त्र स्त्रोत वह प्रकाश


रोम-रोम में आत्मबल का अभिलाष

दे उत्तम चरित उन्नत विकास

रहे वही अटूट आस्था और भर दे विश्वास

दिखलाओ वही प्रकाश हे ईश्वर

जीवन जिसमें रहे प्रकाशित

और अंतरमन भी हो आलोकित।


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