किनारे मिल गए
किनारे मिल गए
जीवन की आपाधापी में
कभी मिले और कभी जुदा हो गए।
नदी के किनारों सी हुई ज़िन्दगानी
इधर हम चलें, तुम वही रह गए।
यहाँ गमों की बरसात और बेबस हालात
तुम जहाँ, वहीं मेरी खुशियाँ सजीं।।
जीवन की नदी के बने दो किनारे
भंवर में फँसे नाव खेते रहे।
तूफानों में ये डगमगाती रही
फिर भी आस के चप्पू चलाते रहे।
ठहरने का नहीं था वक्त
हर हालात में कदम बढ़ते रहे।
कोशिशों की जिद पर
तटबंधों को तोड़...
अनवरत जीवन की नदी में
आती-जाती लहरों की उछाल पर
हिचकोले खाती अपनी कश्ती को
किनारे मिल गए।
तकदीरें झुक गईं....तदबीरें रंग लाईं..
और फिर एक साथ हुए हैं हम।
