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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

अमर जवान

अमर जवान

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वह जिसने सिखलाया

जीना अपना सीना तान 

सिर ऊँचा रख

रख संग अपना अभिमान 

हिन्दुस्तां का वह अमर जवान।।


हर ललकार का मुँह तोङ दिया

शत्रु को भींच भींच हाथों से

मांद से उसके नोच लिया

गर्व देश का जिसका मान 

हिन्दुस्तां का यह अमर जवान।।


निकला जिधर यह विजय बहादुर 

बिखर गए शत्रु के अभिमान 

फैला सन्नाटा उस दल में दूूर दूर

अपनी मिट्टी का यह सम्मान 

हिन्दुस्तां का यह अमर जवान।।


इस कथा का नही कोई अंंत 

गाते गान इनके दिग दिगन्त 

यह रखवाला,हमे चैन बख्श 

रखता हथेली पर पल पल जान

हिन्दुस्तां का यह अमर जवान।।


बात इतिहास की क्या कहें

वर्तमान को देेेखो जो बिन बोले

इस वीर के धीर का करे बखान 

शीश कर न्योछावर मातृभूमी पर 

रखे हमारी माटी का सम्मान 

हिन्दुस्तां का यह अमर जवान।।

 

सदके उसके रूक झुक लेें हम

जीवन का प्रकाश उसके बल से

छँट गए बादल सारे तम के

खङा हुआ यह जब दरकिनार कर

सारे अपने,सारे अपने सजीले अरमान 

हिन्दुस्तां का वह अमर जवान।।


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