STORYMIRROR

Juhi Grover

Abstract Classics

4  

Juhi Grover

Abstract Classics

पुरानी हो गई दास्तां

पुरानी हो गई दास्तां

1 min
312

पुरानी हो गई वो दास्तां, पुराना हो गया अब वो चलन,

खो गई नानी दादी की कहानियाँ, सूने हुए घर आँगन,

महकते गुलाब सब सूख गये, जल रहा चमन चमन,

गूँगे बहरे हो गये अब पेड़ पौधे, शोर हो गया दमन।


खो गये ज़मीं आसमाँ, फैल रहा है हर तरफ अमन,

खो गये इन्सान अपनी ही दौड़ में, खो गया अपनापन,

अकेले अकेले चल रहे भीड़ में भी, भयभीत तन मन,

सामान तो बहुत हो गया, फिर भी हो रही क्यों जलन।


सुनसान हैं सब के सब रास्ते, उदास है देख अब पवन,

नहीं ज़रूरत अब पवन की, चाहे जल रहे यों तन बदन,

आग सीने की जलती रहे, अपनों को ही कर रहे दफ़्न,

परछाइयाँ अपनी ही यों बेच कर, खरीद रहे बस कफ़्न।


जीवन जीवन कहाँ रह गया, हो गया सब मरण मरण,

कृष्ण को छोड़, दुर्योधन का हाथ पकड़, बन गये कर्ण,

महाभारत होगी अब एक और, फिर भी अपने में मगन,

ज़िन्दा हो कर भी मुर्दें हो गये, कर रहे अपना ही पतन।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract