मुर्ग़ा लड़ाई
मुर्ग़ा लड़ाई
समय वो अनोखा था, हिन्दुस्तान में अंग्रेजों ने डाला डेरा था ,
साम दाम दंड भेद
हर युक्ति को अपनाया था
समझ न पाए हम हिन्दुस्तानी
अतिथि को भगवान माना था ।
चित्र दिखला रहा अवध का हाल
वारेन हेस्टिंग्स थे गवर्नर जनरल ,
तब आसफ़ उददौला थे नवाब
दी जागीर नवाब को वापस
नियुक्त किए कुछ ब्रिटिश अधिकारी
खेल रहे मिलकर मुर्ग़ा लड़ाई ।
कर्नल मोर्डोंट ने शुरू किया खेल
लाए गेमकाक्स इंग्लैंड से विशेष ,
नवाब के थे वो सर्वप्रिय
सुंदर व्यक्तित्व के धनी
देखते मनोरंजन के इंतज़ाम सभी
हाथ से मौक़ा न जाने देते कभी ।
खेल में थी जनसामान्य की भी भागीदारी
कर रहे इंतज़ार कब आएगी बारी
महिलाएँ भी देख रही
मन ही मन सोच रही
क्यूँ रक्त रंजित खेल यह, खेल रहे अनाड़ी
मज़े ले रहे जिसका, अँग्रेज अधिकारी ।
चित्रकार जोहान ज़ोफानी भी शामिल
ले रहे लुत्फ कर रहे चित्रकारी
लाल पगड़ी में मोर्डोट सफ़ेद में नवाब के लड़ाकू
पता नहीं कौन जीते कौन हारे
जोफानी तो हैं निश्चिंत
पेशगी को लेकर अपनी
कहावत है यह प्रसिद्ध
जिसको न दे मौला
उसे दे आसफ़ उददौला॥