नूर-ए-चहल को यूँ ही चहकाने दे
नूर-ए-चहल को यूँ ही चहकाने दे
नूर-ए-चहल को यूँ ही चहकाने दे,
आँखों का दरिया आज बह जाने दे।
मुझे अपने जैसा एक रफ़ीक़ दोगे?
जो मुस्कुराने के तुम जैसे बहाने दे।
दो झुमकों के जोड़े-से हैं हम ऐ जाँ,
सबकी नज़रों से दूर साथ निभाने दे।
उसूल से पक्के हो तुम मगर, ये फूल !
आख़िरी दफ़ा इनके बिन गले लगाने दे।
मैं चाय की एक छोटी प्याली-सी हूँ,
इन होंठों को लगकर ही पिलाने दे।
गिर के सम्भलना आदत में शुमार है,
अबकी बार फ़क़त उसे ही उठाने दे।
कोई पूछे, तो तुझे अपना बता,
भरी महफ़िल में आज शर्माने दे।
इल्म करा दूँ, गुमान है तुझपर
जिक्र कर मगर नाम न आने दे।
