मैं प्रेम हूँ
मैं प्रेम हूँ
मैं प्रेम हूँ
तेरे अस्तित्व में विलय चाहता
उगते सवेरे सा उम्मीद और ढलते शाम सा सुकूँ हूँ
तेरे बदन से हो तेरे सांसो में बहना चाहता
मुमकिन हर सौगात ख़ुशी के
मैं शब्द आवारा हूँ
तेरे लहजे तेरे पाक नज्म़ में तराश जाना चाहता
मैं राज एक अलबेला सा हूँ
तुम्हारे जिज्ञासा में सुलझना चाहता
तह तह उकेरो तुम मैं तुम्हारे खोज का परिणाम होना चाहता
मैं ख्वाब एक लम्हा सा
तेरे आँखों में जगना चाहता
शुमार बेपनाह बन
लबों पे ठहरना चाहता
बेशक खुदा तुम मेरे जहान की
बन इबादत तुम्हारे हृदय में कुबूल होना चाहता
मैं रात हूँ
तुम्हारे नींदो का साज चाहता
चाँद सा खूबसूरत तो मैं नहीं
मगर तुम्हें अपना सर्वस्व अर्पित करना चाहता
शब्द है शब्दों का धनी मैं
तुम्हें दुनिया भर के नज्म
गजल उपन्यास लिखना चाहता
है मगर खबर मुझे इक
लिख दूँगा सांसो के रहते एक मुकम्मल
गजल तुम्हें , गढ़ दूँगा तरन्नुम स्नेह को तुम्हारे
हाँ लिख दूँगा सारी भाषाओं में कामिल कि अर्धांगिनी तुम्हें
एक एक शब्द खोज लिखूंगा क्षणिकाएँ तुम्हें
एक नई भाषा में प्रिय
अलंकार हूँ
उपसर्ग सा तेरे नामों के आगे लगना चाहता
राह अंतहीन मैं
तुम्हारे पाँव का स्पर्श चाहता
आज नहीं कल नहीं
मैं सृष्टि के अंत तक
तुम्हारा होना चाहता

