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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

घनघोर अँधेरा

घनघोर अँधेरा

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हर तरफ घनघोर अँधेरा छाया है

प्रकाश भी लग रहा,तम साया है

छद्मता रंग इस तरह चढ़ आया है

लग रहा जैसे अँधेरा भी नहाया है


मुफ़लिसी ने भी वो रंग दिखाया है

जो रंग अमीरी ने भी न चढ़ाया है

गरीबी ने ही हमको सिखलाया है

कोई न सगा,हर आदमी पराया है


सब कुछ ही साखी पैसे की माया है

माया ने हर आदमी को भरमाया है

अमीरों की रात्रि,उजाले की आया है

गरीबों की सुबह भी अंधेरी काया है


बादाम ने नही,ठोकरों ने दिखलाया है

ठोकरों में अक्ल खजाना समाया है

दुःखो ने सुखों के लिए गीत गाया है

गर दुःख को माना सत्य का इशारा है


आंसुओ से ज्यादा,हंसी ने डराया है

हर तरफ घनघोर अँधेरा छाया है

पर जिसने भीतर दीपक जलाया है

उसको कब यह संसार डरा पाया है


अँधेरे ने सिर्फ साखी उसे ही डराया है

जिसने भीतर के चराग को बुझाया है

वो जिंदा होकर भी मृत नजर आया है

जिसके इरादों में बुजदिली का साया है


उसकी ही जिंदगी बनी दो चौराहा है

जिसने झूठ,छल,फरेब को सराहा है

झूठ ने झूठ हेतु, झूठ ही बुलवाया है

पर सत्य हेतु देना न पड़ता किराया है


वो व्यक्ति मुसीबतों में मुस्कुराया है

जिसने खुद को भक्ति में लगाया है

यह सारा संसार,झूठ,फरेबी,माया है

बाला भक्ति में सच्चा सुख समाया है


जिसने वक्त रहते,स्वयं को जगाया है

उसने खुद को मंजिल पर पहुंचाया है

चाहे कितना घनघोर अँधेरा छाया है

कर्मवीरों ने अमावस को पूनम बनाया है।


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