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Goldi Mishra

Drama Romance Others

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Goldi Mishra

Drama Romance Others

सुवागी

सुवागी

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शाम बस ढलने को थी,

मेरे अंदर एक आग बुझ सी रही थी।।

आहिस्ता धीमी आंच पर सुलगती लकड़ी सा था,

ये मन आधा बाकी आधा सुलग  रहा था,

मेरा हो कर ये मन मेरा ना था,

इन हाथों से मैंने साथ फिसलते देखा था,

बैरागी मानो सुकून की तलाश में हो,

मानो बरसात में पंछी का आशियाना टूटा हो।।

शाम बस ढलने को थी,

मेरे अंदर एक आग बुझ सी रही थी।।

गली में हर ओर एक सन्नाटा सा था,

जिसको लौटना ना था इन आंखों को इंतज़ार उसका था,

ये एहसास जो मेरी दहलीज पर आकर ठहरा था,

इस एहसास का ख्वाब बस कलम का हो जाना था,

मैं मंजिल और राह दोनों खो बैठा था,

मैं राग सुर गीत आज सब भूल बैठा था,

शाम बस ढलने को थी,

मेरे अंदर एक आग बुझ सी रही थी।।

ये हवाएं काश खामोशी से ही गुज़र जाएं,

जो ये ठहरी पल भर को कहीं कोई जिक्र बयां ना जो जाएं,

सुनी अनसुनी सी थी,

ये जो बातें खामोशी से हो रही थी,

एक चुप्पी थी गहरी,

जिसमें गूंज यादों की थी,

शाम बस ढलने को थी,

मेरे अंदर एक आग बुझ सी रही थी।।

ये जो किनारे इस गली के हैं,

ना जाने किस डगर पर मिलने को हैं,

ये शाम काश मेरे हिस्से हो,

कुछ और महसूस करूं मैं इस ख्वाब को काश सवेरा फिर ना हो,

कुछ बाकी अपने अंदर लगा हैं,

मुझमें एक राग अंकुरित हुआ हैं।।

धीमे धीमे बीते ये शाम बस यूं ही,

ये जो हासिल है राग उस पर लिखने हैं गीत कई।।



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