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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"दुःख,दर्द,तकलीफ़"

"दुःख,दर्द,तकलीफ़"

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दुःख, दर्द, तकलीफ़ में कोई न देता साथ

सुख, सुकून, चैन में हर कोई बटांता हाथ

जब न होगा, कुछ भी यहां पर तेरे पास

तेरे अपने घर से निकालेंगे, मारकर लात


यही, साखी स्वार्थी दुनियादारी सच बात

बिन मतलब कोई नहीं करता, मुलाकात

नाकामयाबी दौर में सब छोड़ देते, हाथ

कामयाबी में पास होती, लोगों की ज़मात


जितने बढ़ते जाते कदम, सफलता साथ

उतने अकेले होते जाते, ख़ुद के निशान

मित्र भी दिखा देते, बस अपनी औकात

तू तो बड़ा बन गया, अब क्या करे, बात?


तू न रहा, हमारी बिरादरी का राजकुमार

सफलता ही बनी, मेरी सावन का अकाल

सुख भी देता, कभी-कभी चांद जैसा दाग

जो दोस्ती दावा करते, यहां पर सज्जाद


वो मुसीबत आने पर छोड़ जाते है, साथ

सबने ही आजकल छद्म रखे हुए है, दांत

दुःख, दर्द, तकलीफ में कोई न देता साथ

सब लोग दौलत के हुए, आजकल दास


दुःख, दर्द, तकलीफ सत्य कराते, अहसास

खुदगर्ज जग में, खुद के सिवा कोई न पास

सब रिश्ते मतलबी, सब स्वार्थी है, जज्बात

बिना स्वार्थ कोई सीधे मुंह न करता, बात


केवल बालाजी का रिश्ता सच्चा, खास

सुख, दुःख, सब में उनका एक जैसा हाथ

छोड़ दे, साखी, बनावटी रिश्ते, अकस्मात

भक्ति कर उनकी, वो पूरी सृष्टि के नाथ


पड़ गई उनकी दृष्टि, बदलेगी तेरी सृष्टि

बालाजी की भक्ति है, साखी, लाजवाब

जो करता भक्ति, उसे मिल जाती मुक्ति,

भक्ति आगे, स्वर्ग भी छोटा सा, एक बाल


दुःख, दर्द, तकलीफ से जो गुजरे, एक बार

वो जान जाता, शूलों में कैसे बनते, गुलाब

जो हरगम को सहता, समझकर एक रात

वो एक दिन अवश्य ही पा जाता है, प्रभात।



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