उस गली से होकर गुज़र
उस गली से होकर गुज़र
बेसबब गुज़रता रहता है
शहरों की तंग गलियों से
कभी तो कविता और ग़ज़लों की
गली से होकर गुज़र
ए दिल !
क्यों संभलकर चलता है तू ?
कभी तो रंगीन निगाहों की
डगरी से होकर गुज़र !
इश्क़ में जीने - मरने का
स्वाद भी चख ले ज़रा
किन्हीं हसीन होठों की
मुस्कराहट से होकर गुज़र !
हँसना-हँसाना तो है एक बहाना
किसी उदास मन का गम चुराने के लिए
उसके दिल से होकर गुज़र !
माना कि गम कई हैं
बोझ कई हैं
सफर में कांधों को झुकने के लिए
पर चलते - चलते किसी का हौंसला होकर गुज़र !
यूँ गुज़र हर गली, नुक्कड़, मोहल्ले से
कि जिस से मिले
उसकी यादों से होकर गुज़र !
रहबर यूँ ही गुज़र जाए
ज़िन्दगी का ये सफर
गुज़रने से पहले
ज़रा दो पल जी कर गुज़र !