तुम फिर से आना
तुम फिर से आना
हाँ, अटल तुम फिर से आना,
सोए भारत को जगाना,
जगाना उस देशभक्ति को,
जो होती इक दिन ही मग्न।
विश्व पटल पर हमारी वसुधा,
न होने पाऐ नग्न,
समझाना इस नव पीढ़ी को,
आजादी अभी अधूरी है।
मानव की मानवता से,
कोसों की दूरी है,
समझाना कि,
हमें पाटनी वो खाई है
जो मानव और मानवता,
के बीच आई है।
समझाना तुम इस पीढ़ी को,
कि वसुधा बहुत पीड़ित है,
तुम कर डालो जो करना है,
क्यूँकि समय सीमित है।
समझाना तुम कि
इस वसुधा का कर्ज,
तुम बच्चों पर भारी है
इस कर्ज को अभी,
उतारना हम सबकी जिम्मेदारी है।
सोए ज़मीर को फिर जगाने,
गिरती साख को बचाने,
फिर से सोने की चिड़िया बनाने,
हाँ, अटल तुम फिर से आना।
हाँ, अटल तुम फिर से आना
इस वसुंधरा की सुप्त बगिया को,
तुम आकर के फिर महकाना,
हम चाहते हैं, इक बार फिर से।
लाल किले की प्राचीरों से,
अपने काव्य के जोश से,
हम सब में फिर जोश जगाना,
हाँ, अटल तुम फिर से आना।
इन डिजिटल होती आत्माओं में,
इक बार फिर से भाव जगाना,
हाँ, अटल तुम फिर से आना,
इस पीढ़ी को यह समझाना।
कि देशभक्ति इक जज़्बा है,
इस जज़्बे को हमें भुनाना,
मानवता को हमें जगाना,
वर्ग-जाति का भेद मिटाना।
हाँ, अटल तुम फिर से आना,
हाँ, अटल तुम फिर से आना,
समझाना इस नव पीढ़ी को,
नहीं कुछ भी असम्भव।
ठान लो जो कुछ करने की,
बढ़ते रहो तुम अविरल,
बाधाओं से पार पाना सिखलाने,
हाँ, अटल तुम फिर से आना।
भारतभूमि का मान बढ़ाने,
सर्वधर्म समभाव जगाने,
परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने,
कई स्वर्णिम चतुर्भुज और बनाने,
हाँ, अटल तुम फिर से आना,
हाँ, अटल तुम फिर से आना।