ढलती रात.....
ढलती रात.....
आज रात को ढलते देखा।
उजाले को ओझल होते देखा,
ख़ामोशी को गहरे होते देखा,
शहर के शोर को चुप होते देखा,
मैने मेले को वीरान होते देखा।
आज रात को ढलते देखा।
मेरी तनहाई को सवाल करते देखा,
और जवाब की सांसे बिखरते देखा,
मेरे अंदर मन को शांत होते देखा,
इन रास्तों पर बिखरी सिहाई को देखा।
आज रात को ढलते देखा।
रात भी जागी सी है और मैं भी,
भोर ज़रा गुम सी है और खोया हूं मैं भी,
आधा है चांद आस्मां में और अधूरा हूं मैं भी,
जग रहा है पतंगा और जग रहा है मेरा साया भी।
आज रात को ढलते देखा।
थोड़ी आस और थोड़ी कोशिश भी,
बेताबी सी है एक जमीन में और बेताब है आसमान भी,
प्यास है दिल में और प्यासी है बारिश भी,
रेत है दरमियां और सूख गई है ये शाख भी।
