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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

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Lokeshwari Kashyap

Drama Classics Inspirational

मिट्टी

मिट्टी

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ये शरीर है मिट्टी की गुड़िया,

इससे कर ले उसकी भक्ति

जिंदगी तर जाएगी l


तू चाहे जितना इसे सजा ले, संवारे ले,

तन है मिट्टी की गुड़िया,

एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगीl

 

तू जितना इस पर जान छिड़केगा,

यह तुझे उतना ही तुझे तड़पाएगी l

 धरी रह जाएगी तेरी सारी चालाकी,

 यह तुझे मदारी सी मचाएगी l

 

 कोई धाम नहीं है यह तेरा,

 यह बस एक खाली मकान है l

 माया नगरी की इस दुनिया में,

 बस सजी-धजी एक दुकान है l


 इस मायानगरी में देखो तो सही 

 ऐसी सैकड़ों सजी -धजी दुकानें हैं l

 यह तन तो उस माया पति की,

 चलती -फिरती मिट्टी की गुड़िया है l


 उसने दिया यह तन हमको,

उसकी भक्ति रस के पान को l

 अपना समझ बैठे हो तुम पगले ,

 उस दीनदयाल के दान को l


 कर ले उसकी निश्छल भक्ति, 

 गौरवान्वित कर ले इस तन मन को l

 अर्पण कर दे सारे कर्म अपने,

 कर्म फल को त्याग कर,

धारण कर तू धर्म कोl


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