यादें
यादें


ज़ेहन, ख्याल,या तशविह कहूं,
यादों को में किसका हबीब कहूं,
एहतराम, इल्तिज़ा,इनायत कहूं,
अब नहीं है घर में मेहमान किसे कहूं,
हबीब, रकीब,या तहजीब से कहूं,
यादें बस दिल के करीब कहूं,
चांद ने हया कर लिया हमसे उनसे क्या कहूं,
यह हमारा या उनका नसीब कहूं,
मेहमान, तवॉरुख़, या तोहफा कहूं,
याद- ए - दास्तां अब तुम्हे क्या कहूं,
तुम ढूंढ ही लोगों पता मेरे कुब्र का,यह कैसे कहूं,
तू ज़र्रा ज़र्रा मेरे हर ज़ख्म पर है मरहम बस यह कहूं,
तुझे दावा या ज़हर कहूं,
ए याद बता तुझे क्या कहूं,
तू गहरी है ज़ख्मों पर जैसे ज़ख्म,
तू सुकून है कभी आस की मै तो बस यह कहूं।