बेटी
बेटी
ये आतिश जमाने की लगाई है
कि कहते है बिटिया पराई है
कहते है काट दो पर इसके ये बहुत उड़ रही है
इधर उधर ये कुछ जादा ही फुदक रही है
कर दो कन्या दान पीले करो हांथ इसके
दफ़न करो सारे अरमान इसके
करो ब्याह ये सम्भल जाएगी
बहू बन के जब ये अपने घर जाएगी
पढ़ने की उम्र में ये घर की जीमेदारिया उठाएगी
मां बनेगी जब तब सयानी हो जाएगी
लोगो की परवाह की बाप ने
बेटी का तनिक ख्याल ना आया
बिदा किया बेटी को
अरमानों का कतल कराया
आसू उसके लहू के कतरे
इन बातो को कोई समझ ना पाया
जब घोटना था युं गला ही उसका
तो कोख में ही क्यों ना मार गिराया!