पर्यावरण
पर्यावरण
पेड़ पौधों की स्वच्छ हवा न जाने कहां खो गई
वन उपवन वीरान हुए, ऋतुओं की खुशबू भी खो गई।
कुएं कभी सूखे न थे, नदी रेत से भरी नहीं थी
जंगल भी आबाद थे, पेड़ों की कतारें लगती थी।
लकड़ी काटकर भवन बने, धरा भी तपने लगी।
पहाड़ों से पत्थर तोड़ लाए, औषधि बर्बाद हुई
कायनात का हर कतरा बर्बाद यूं ही हो रहा है
हमारी आंखें बंद हैं, विनाश में मनाते आनंद हैं।
आओ आज कसम हम खाएं, प्रकृति को दिल का दर्पण बनाएं
धुंधली न हो उसकी तस्वीर, पर्यावरण को ऐसा स्वच्छ बनाए।
