इकलौते का रोना
इकलौते का रोना
आज
एक माँ को रोते सुना
देख नहीं पाया
एक पिता को रोते देखा
सुन नहीं पाया
आज जो कुछ देखा
और जो कुछ सुना
तो बहुत कुछ समझ आया
कि
माँ का रोना
और
पिता का रोना
दोनों अलग हैं
एक में कोमलता है जो असहनीय है
एक में कठोरता है जो अकथनीय है
माँ अपना रोना सुना जाती है
वो रोक नहीं पाती अपनी ममता का बहाव
पिता अपने दुःख व्यक्त नहीं करते
वो कठोरता से अपना पुरुषत्व दिखा जाते हैं
पर दोनों का रोना
उम्रभर का है
क्योंकि जो खोया है उन्होंने
वो उनका 'एक' ही था
'इकलौता'
जिसने अपने 'कच्चे प्यार' की ख़ातिर
अपने माँ-बाप के 'सच्चे प्यार' को रौंदकर
मौत को गले लगा लिया
वो माँ-बाप जिन्होंने
कई मन्नतें माँगने के बाद
कई पत्थरों को पूजने बाद
उसे पाया था
अब उन माँ-बाप का कोई नहीं है
जिसे वो देख पाएँ
जिस पर अपना ममत्व
और अपना पितृत्व लुटा पाएँ
वो 'एक' 'इकलौता' अब नहीं है
है तो बस खोने के बाद का रोना...
जिसे मैं सुन पा रहा हूँ मगर देख नहीं पा रहा
और गर देख पा रहा हूँ तो सुन नहीं पा रहा !