इंसान बने रहना
इंसान बने रहना
(कोरोना काल जैसे गम्भीर दौर की कविता)
माना कि ये दौर ज़रा मुश्किल है,
पर रख भरोसा
कि ये दौर भी गुज़र जाएगा
हँसेगी फिर से ज़िंदगी
कि वो दौर भी आएगा
सहजता फिर से आएगी,
ये उदासी पल में छँट जाएगी
फिर से अपनों से मिलना होगा
फिर से हँसना खिलना होगा
फिर से बच्चे स्कूल जाएंगे
और वो काम पर
फिर से सबके टिफ़िन बनेंगे,
फिर से बाइक का हॉर्न बजेगा
फिर से सफ़र, फिर से चलना
फिर से मिश्री-सा घुलना मिलना
निकम्मेपन से जो अकड़ आया है शरीर
फिर से तरो ताज़ा होगा
सब कुछ ऐसा होगा ज्यों
पतझड़ के बाद बसंत में होता है
नया-नया सब कुछ,
सब कुछ हरा-हरा
खिलता, खिलखिलाता,
ताज़गी और ख़ुशबू से भरा-भरा
पर ऐ गलती के पुतलों,
सबक लेना इस दौर से
कि ज़्यादा की भागदौड़ किसी काम की नहीं
थोड़े में भी गुज़ारा हो सकता है
किसी भूखे के लिए दिल खुला रखना
वो, ऊपरवाला,
तुम्हारे लिए ख़ुशियों के सारे द्वार खोल देगा
उसके घर में कर्मों का सारा हिसाब रहता है
ये दिमाग़ में जरूर रखना
भूलकर भी किसी को मत सताना
वरना प्रकृति जानें किस रूप में सताएगी
कोई नहीं कह सकता
ऐसे ही एक बनें रहना,
ऐसे ही मददगार बनें रहना,
ऐसे ही सकारात्मक बनें रहना,
ऐसे ही आध्यात्मिक बनें रहना,
ऐसे ही राष्ट्र हितैषी बनें रहना,
ऐसे ही थोड़े में गुज़ारा करना,
ऐसे ही बचत करना,
ऐसे ही कुछ भी बिगड़ने मत देना,
ऐसे ही सफ़ाई रखना,
ऐसे ही अपनों के लिए समय निकालते रहना,
ऐसे ही तुम भले-भले बनें रहना...
बस... ऐसे ही, इंसान बनें रहना...