मंज़िल भी मैं, सफ़र भी मैं"
मंज़िल भी मैं, सफ़र भी मैं"
मंज़िल भी मैं, सफ़र भी मैं,
ख़ुद से ही आगे, ख़ुद ही पीछे मैं।
धूप भी मेरी, छाँव भी मेरी,
हँसी भी मेरी, घाव भी मेरी।
चलता रहा हूँ, रुका नहीं,
गिरा कई बार, झुका नहीं।
जो पाया, वो मेरा नहीं,
जो खोया, उसका ग़म नहीं।
रास्ते मेरे, मंज़र मेरे,
ख़्वाब भी मेरे, सिकन्दर भी मैं।
मंज़िल भी मैं, सफ़र भी मैं,
ख़ुद से ही आगे, ख़ुद ही पीछे मैं।
नारी का बलिदान
युद्ध भले ही खेले होंगे, रण में वीर जवान,
पर हर जीत की नींव रखी, नारी के बलिदान।
राधा ने प्रेम में जिया, विरह की अग्नि जली,
बिन बोले ही सहती रही, आँसू तक ना बहे।
सीता ने धधकती ज्वाला में, अपनी परीक्षा दी,
पतिव्रता की शक्ति से, सत्य को सिद्ध किया।
सावित्री ने चल दी राह, यम से टकराने,
प्रेम के बल से जीत लिया, जीवन फिर से पाने।
कभी माँ बनके त्याग किया, कभी बहन सहारा बनी,
हर रूप में हर युग में, नारी ने दुनिया तनी।
तो मत कहना नारी ने, क्या कोई बलिदान दिया,
उसकी हर साँस में बसी, प्रेम और त्याग की दिया।
रणभेरी जब भी बजेगी, पुरुष तलवार उठाएगा,
पर हर वीर की इस धरती पर, नारी ही जननी कहलाएगा।
