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Brajesh Bharti

Tragedy

4.7  

Brajesh Bharti

Tragedy

यादें , क्या कहूं ?

यादें , क्या कहूं ?

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यादें ..... 

क्या कहूं इनके बारे में 

जब भी आती है तड़पा जाती है

आंखो से आंसू छलक पड़ते हैं

लब खामोश हो जाते हैं


सोचती हूं मै... क्यूं ? आखिर क्यूं ?

याद रह जाते हैं वो अजनबी 

जो हमे झिंझोड़ कर चले जाते हैं

और मशगूल हो जाते हैं

अपनी जिंदगी में 


उपर से ये याद.... उफ्फ

सोचते सोचते अलग दुनिया बस जाती है

शायद किस्मत में नहीं था हमारा मिलना 

ऐसा कह के दिल को तसल्ली दिलाते हैं

दिल तड़प उठता है उनसे मिलने को 

और हम किस्मत के आगे बेबस हो जाते हैं

अश्क लहू बन के टपकते हैं

जिस्म से मानो रुह निकल जाती है


आह....

क्या कहूं इन यादों के बारे में 

ये बहुत जालिम होती है

सच कहती हूं ... यादें दुखदाई होती हैं।


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