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Brajesh Bharti

Abstract

4.7  

Brajesh Bharti

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मौत - एक पिंजरा

मौत - एक पिंजरा

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200


कैसे बहाऊं मैं, अपना ये रक्त,

मैं दुविधा मे हूँ, और हूँ असख्थ।

नहीं, ये युद्ध अब नहीं लड़ पाऊँगा मैं,

जीत जाएगी मौत, हार जाऊँगा मैं।


ये है मेरे युद्ध मे पूर्णविराम,

माया है ये, सब है माया,

धरती चाहे जो, वो है तेरा साया|

आकाश, अग्नि, वायु, जल, वसुधा,

पाँच तत्व का ये पिंजरा, बस है काया।


मृत्यु क्या है कोई समझ ना पाया,

विलीन हो गई ये आत्मा, ये सब है माया।

कोई कहता अपना, कोई कहता पराया,

जा रहा हूँ, बस रह जाएगा मेरे कर्म की छाया।


दुनिया ने जो दिया है, उसे अपने में बसा लिया,

ठंडी सांसें भर के, अंतिम ये निशचय लिया।

छोड़ के ये मोह, दूर बहुत दूर चला,

खुशी में नहीं, सच्चा दोस्त का सहारा, सिर्फ गम से मिला।


करना जो चाहा,वो कभी कर ना पाया,

दूसरों को बस, मेरी गलती ही भाया।

कर्मो का सहारा, लिए जा रहा हूँ,

याद सभी की आएगी, इस लिए मैं रो रहा हूँ।


मौत ने दस्तक दी है, तो साथ उसके ही जाऊँगा,

जो अपने थे, शायद उनको अब अपना ना बोल पाऊँगा।

पिंजरा खोल, ये पंछी उड़ चला,

सच्चे दोस्त का सहारा, सिर्फ गम से मिला।


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