इक प्रेम भरा दिल तोड़ दिया
इक प्रेम भरा दिल तोड़ दिया
ये किसने झूठी तृष्णा में, मीठा चरणामृत छोड़ दिया ।
मन सज्जा की अभिलाषा में इक प्रेम भरा दिल तोड़ दिया ।
जिनको हमने अपना माना, वो हमें बिलखता छोड़ गए ।
झूठे सूरज की चाहत में, दीपों से नाता तोड़ गए ।
ये किसने जिद के पत्थर से, इक कलस वफ़ा का फोड़ दिया....।।
जो कहता है वो जान गया, इस चेहरे की परिभाषा को ...
वो बतलाए क्या पढ़ा कभी, उसने भावों की भाषा को ...।
कुछ शब्द गढ़े कुछ सोच जुड़ी, फिर अपना परिचय जोड़ दिया....।।
इन रंगों का भी क्या परिचय, ये अर्थ हजारों देते हैं ।
अक्सर पीतल की रंगत को, कंचन कहला ही लेते हैं ।
शब्दों की अजब कहानी है, बस तोड़ व जोड़ मरोड़ दिया....।।