यकीं टूटा हमारा है
यकीं टूटा हमारा है
यकीं टूटा हमारा है, मग़र सहना नहीं छोड़ा।।
मिले हैं ज़ख्म तो बेहद मगर हंसना नहीं छोड़ा।।
गरीबी में ही बीता है मेरा बचपन मग़र तब भी
पढ़ाई थी मेरी मंज़िल कभी पढना नहीं छोड़ा।।
उड़ाने आसमाँ तक भी लगाकर देख ली मैने
जमे हैं पांव धरती पर यहाँ रहना नहीं छोड़ा।।
निगहबानी बुजुर्गों की मयस्सर थी नहीं मुझको
सज़ा मिलती रही चाहे भला करना नहीं छोड़ा।।
मुझे फुर्सत नहीं मिलती कि मंदिर जाऊँ या मस्जिद
चुरा कर वक़्त फिर भी भक्ति में रमना नहीं छोड़ा।।
महकती इन फ़िज़ाओं में रवाँ हैं शोखियाँ अब भी
तुम्हारे प्यार में हमने खुदी रहना नहीं छोड़ा।।
सजा है इश्क़ गर तो भी मगर मंजूर है मुझको
चले उस राह पर अक्सर कभी चलना नहीं छोंड़ा।।

